Description
अशोक पागल उस शख्सियत का नाम है जो पांच दशक तक झारखंड के हिंदी रंगमंच का पर्याय बने रहे। उन्होंने न सिर्फ रांची में संस्थागत आधुनिक रंगमंच की शुरुआत की बल्कि रंगकर्मियों की एक नई पीढ़ी तैयार की। परंपरागत दृष्टि रखते हुए भी वे सिर्फ परंपरा के अनुसरणकर्ता रंगकर्मी नहीं थे। हमेशा मौलिक ढंग से सोचते थे। कुछ न कुछ नया करने की चाह उनमें बराबर रही। ‘अमीबा’, ‘ओह नौरी’, ‘शकुंतला’ आदि रंगमंचीय और श्रुति नाट्य व कविता पेंटिंग प्रदर्शनी जैसे सांस्कृतिक उपक्रम उनके मौलिक होने की जिद के ही प्रयोगधर्मी परिणाम हैं। 22 जुलाई 2022 को हम सबने उन्हें खो दिया। यह पुस्तक उनके ‘खोने’ का लेखा-जोखा या मूल्यांकन नहीं करती है बल्कि उनके और हस्ताक्षर नाट्य संस्था का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करती है। रांची और झारखंड के, और प्रकारांतर से भारत के हिंदी रंगमंच में रुचि रखने वालों के लिए एक जरूरी किताब।
Written by theater artist and storyteller Ashwini Kumar Pankaj, the book introduces the experimental theater work and life of Ashok Pagal, actor, playwright, director and founder of the theater organization ‘Hastakshar’ in Hindi drama and theater of India, especially in the theater of Jharkhand.
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